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नायक बना जिलाधिकारी: जनता के लिए ज़मीन पर उतरने वाला अफसर



नायक बना जिलाधिकारी: जनता के लिए ज़मीन पर उतरने वाला अफसर

न्यूज एक्सपर्ट - सुशील शर्मा 

हापुड़ - जनपद हापुड़ में जबसे अभिषेक पांडे ने जिलाधिकारी का कार्यभार संभाला है, तबसे शासन-प्रशासन की कार्यशैली में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिला है। एक ओर जहां अधिकारी आमतौर पर दफ्तरों की चारदीवारी में बैठकर निर्णय लेते हैं, वहीं डीएम अभिषेक पांडे उन गिने-चुने अधिकारियों में हैं जो जनता के बीच जाकर समस्याएं सुनते हैं, समाधान करते हैं और अधिकारियों को जवाबदेह भी बनाते हैं।

बिना रोक-टोक जनता दरबार, जहाँ समाधान है प्राथमिकता

डीएम पांडे का जनता दरबार अब किसी औपचारिक आयोजन का नाम नहीं रह गया है। यहाँ फरियादी को न तो लाइन में लगना पड़ता है और न ही घंटों इंतजार करना। चाहे एक फरियादी हो या पचास, जिलाधिकारी सभी को आदरपूर्वक अंदर बुलाकर स्वयं बैठाकर बात करते हैं, और मौके पर ही संबंधित अधिकारियों से फोन या वीडियो कॉल पर बात कर समाधान कराते हैं।



रिश्वत की शिकायत पर तत्काल संज्ञान, लेकिन संवेदनशीलता भी बरकरार

हाल ही में एक जनचौपाल के दौरान ग्रामीण ने एक लेखपाल पर रिश्वत लेने का आरोप लगाया। कानूनन प्रक्रिया के तहत जिलाधिकारी ने उस लेखपाल को नोटिस जारी कर जवाब देने का अवसर दिया। लेकिन अफसोसजनक रूप से उस लेखपाल ने मानसिक दबाव में आकर जहरीला पदार्थ खा लिया।

जैसे ही जिलाधिकारी को यह जानकारी प्राप्त हुई, उन्होंने तत्काल संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि लेखपाल का उपचार सर्वोच्च प्राथमिकता पर कराया जाए और उसके परिवार को हर संभव सहायता दी जाए।

लेखपाल की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु के बाद चकबंदी लेखपाल संघ द्वारा जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना प्रदर्शन किया गया। इस पूरे घटनाक्रम में जहां अधिकांश अधिकारी खुद को पीछे खींच लेते, वहीं डीएम अभिषेक पांडे ने सामने आकर संघ से वार्ता की पहल की, न सिर्फ धरनास्थल से संघ के कार्यकर्ताओं को वार्ता के लिए बुलाया बल्कि खुले दिल सभी से संवाद किया और हर वैध मांग पर उचित कार्रवाई का आश्वासन भी दिया।

क्या ज़िम्मेदारी निभाना अब सवालों के घेरे में?

अब सवाल यह है कि जब कोई अधिकारी जनता के बीच जाकर, जनता की आवाज़ बनकर पारदर्शी प्रशासन देने की कोशिश करता है, तो क्या उसे ही कटघरे में खड़ा कर देना न्यायसंगत है? क्या रिश्वत की शिकायत आने पर डीएम का एक कानूनी प्रक्रिया अपनाना गलत था?


हापुड़ की जनता जिसे 'नायक' कहकर सम्मानित कर रही है, उसी जनता के बीच से कोई शिकायत आए और उसका समाधान किया जाए, तो यह लोकतंत्र की जीत है, न कि विफलता।

जिलाधिकारी अभिषेक पांडे का प्रशासनिक निर्णय, मानवीय संवेदना और संवाद की पहल – तीनों ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह सिर्फ एक अधिकारी नहीं, बल्कि जनता के बीच का नेतृत्वकर्ता हैं।






1 Comments

  1. गलत यह है कि रिश्वत की शिकायत आने पर श्रीमान जी द्वारा फिल्मी स्टाइल में सुर्खियां बटोरने के लिए बिना किसी स्पष्टीकरण के तत्काल निलंबित कर दिया गया जो पूर्णतः नियम विरुद्ध है , मान लीजिए आप किसी गांव के लेखपाल है , गांव का प्रधान कहता है कि लेखपाल साहब जो मेरे वोटर उनका गरीबी रेखा से नीचे का आय प्रमाण पत्र बना दो जबकि वो गरीबी रेखा से नीचे है भी नहीं है, लेखपाल ऐसा करने से मना कर देते है, अब होता ये है गांव में आते बड़े अधिकारी लोगो की समस्याएं सुनने और गांव का प्रधान तैयार करता अपने 20-25 चेलों को झूठी शिकायत कराने के लिए , बस फिर क्या बड़े अधिकारी साहब द्वारा स्वयं की जय जय कार कराने के लिए फरमान सुना दिया जाता है।
    बड़े साहब की कार्यवाही अगर बिल्कुल नियमानुसार थी तो मा o मुख्यमंत्री जी द्वारा भी त्वरित ऐसी ही कार्यवाही बड़े साहब के ऊपर करनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने तो कमिश्नर और डीआइजी सर की टीम भेजी जांच के लिए। फिर इससे तो यही प्रतीत होता है कि छोटा कर्मचारी कीड़ा मकोड़ा है और.................
    तो भाई expert महोदय, आज आप भले ही लकीर के उस ओर है, और ईश्वर न करे आपको लकीर के इस ओर की परिस्थितियों से जूझना पड़े।
    ' जब रोम जल रहा था, नीरो बांसुरी बजा रहा था '

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