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कार्रवाई से बचने को ई-रिक्शा चालक ने रचा ड्रामा, पीटीओ और टीआई पर लगाया झूठा आरोप, सच्चाई आई सामने

कार्रवाई से बचने को ई-रिक्शा चालक ने रचा ड्रामा, पीटीओ और टीआई पर लगाया झूठा आरोप, सच्चाई आई सामने

सुशील शर्मा 

हापुड़ - कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जब अधिकारी अपनी ड्यूटी ईमानदारी से निभाते हैं, तब कुछ लोग उस कार्रवाई से बचने के लिए झूठे आरोप लगाकर माहौल को गुमराह करने की कोशिश करते हैं। ऐसा ही एक मामला शुक्रवार को हापुड़ में सामने आया, जब ई-रिक्शा चालक ने परिवहन विभाग के पीटीओ आशुतोष उपाध्याय और ट्रैफिक इंस्पेक्टर (टीआई) छविराम पर झूठे आरोप लगाकर हंगामा खड़ा कर दिया।


चेकिंग के दौरान रचा गया ‘ड्रामा’

शासन के निर्देश पर पीटीओ आशुतोष उपाध्याय सड़क पर बिना पंजीकरण दौड़ रहे वाहनों के विरुद्ध अभियान चला रहे थे। इसी अभियान के तहत एक ई-रिक्शा को रोका गया, जो बिना रजिस्ट्रेशन चल रहा था। चालक के पास कोई वैध दस्तावेज नहीं थे। जब पीटीओ ने नियमानुसार कार्यवाही शुरू की, तो चालक पहले हाथ जोड़कर विनती करने लगा और फिर अचानक सड़क पर गिरकर चिल्लाने लगा कि “मुझे पीटीओ और टीआई ने मारा।”


टीआई मौके पर थे ही नहीं

सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि जिन ट्रैफिक इंस्पेक्टर छविराम पर मारपीट का आरोप लगाया गया, वे उस वक्त मौके पर थे ही नहीं। टीआई छविराम ने खुद स्पष्ट किया कि वे पूरे समय पुलिस कार्यालय में कार्यरत थे। यह बात भी रिकॉर्ड से पुष्ट होती है। ऐसे में यह साफ है कि ई-रिक्शा चालक ने प्रशासनिक कार्रवाई से बचने के लिए एक सुनियोजित ड्रामा रचा।


पुलिस पहुंची तो भाग खड़ा हुआ रिक्शा चालक

डायल 112 की पुलिस मौके पर पहुंची और जब पूछताछ की गई तो चालक ने वही आरोप दोहराए। लेकिन जैसे ही पुलिस ने स्थिति को भांपा, चालक अचानक सीधे होकर अपनी ई-रिक्शा में बैठा और मौके से चुपचाप चलता बना। यह व्यवहार ही साफ दिखाता है कि वह नाटक कर रहा था।


ईमानदार अधिकारियों को बदनाम करने की साजिश

पीटीओ आशुतोष उपाध्याय ने इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “हम केवल शासन के आदेशों का पालन कर रहे हैं। नियम विरुद्ध चलने वाले वाहनों के खिलाफ कार्रवाई करना हमारा कर्तव्य है। ऐसे में कुछ लोग कानून से बचने के लिए झूठे आरोप लगाते हैं, लेकिन सच्चाई ज्यादा देर तक छिप नहीं सकती।”


टीआई छविराम ने भी कहा कि यह आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद हैं और प्रशासनिक छवि धूमिल करने की कोशिश हैं। “अगर मैं मौके पर नहीं था, तो मुझ पर आरोप कैसे लग सकता है? क्या मेरा कोई क्लोन वहां मौजूद था?” टीआई का यह बयान ही पूरे मामले की सच्चाई उजागर कर देता है।


इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि जब अधिकारी ईमानदारी से अपने दायित्व का निर्वहन करते हैं, तो उन्हें झूठे आरोपों से डराने की कोशिश की जाती है। लेकिन सत्य हमेशा सामने आता है। ऐसे मामलों में समाज को भी सजग रहकर सही और गलत में फर्क समझना चाहिए।

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